इन्टरलाॅकिंग एवं नाॅन-इन्टरलाॅकिंग
नाॅन-इन्टरलाॅकिंग
जिन स्टेशनों पर गाड़ियो के संरक्षित संचालन की दृष्टि से पाॅइन्ट तथा सिगनल आपस में जुडे हुए नहीं होते, ऐसे स्टेशन को नाॅन इन्टरलाॅक्ड स्टेशन कहते हैं। ये तीन प्रकार के हो सकते हैं -
नाॅन इन्टरलाॅक्ड पेडलाॅक्ड स्टेशन - ऐसे स्टेशनों पर पाॅइन्ट की लाॅकिंग के लिए पाॅइन्ट सेट करने के बाद उस पर काॅटर बाॅल्ट लगाकर हाथ ताला लगाया जाता है। गाड़ी आगमन के समय ऐसे स्टेशन के फेसिंग पाॅइन्ट पर कर्मचारी का उपस्थित होना आवश्यक है।
नाॅन इन्टरलाॅक्ड की-लाॅक्ड स्टेशन - ऐसे स्टेशनों पर पाॅइन्ट को लाॅक करने के लिए पाॅइन्ट सेट करने के बाद उस पर रेलवे द्वारा अनुमोदिन डिजाइन के डबल की-लाॅकिंग ताले लगाए जाते हैं जिनकी एक चाबी स्टेशन मास्टर के व्यक्तिगत संरक्षण में रहती है व दूसरी ताले में लगी रहती है। स्टेशन मास्टर रिलीज चाबी को देखकर सुनिश्चित कर सकता है कि पाॅइन्ट किस दिशा में सेट है।
मोडिफाइड नाॅन इन्टरलाॅक्ड स्टेशन (रुडीमेन्ट्री इन्टरलाॅकिंग) - ऐसे स्टेशन पर पाॅइन्ट की लाॅकिंग के लिए उपरोक्त दोनो पद्धति होती है। सामान्य स्थिति मे सभी पाॅइन्टो के ताले फ्री होते हैं। शन्टिंग के समय उनमे हाथ ताले लगाकर शन्टिंग कार्य किया जाता है तथा गाड़ी संचालन के समय पाॅइन्ट पर लगे हुए अनुमोदित डिजाइन के डबल की लाॅक या ट्रिपल की लाॅक द्वारा ताला लगाकर गाड़ी को लिया या भेजा जाता है।
इन्टरलाॅकिंग
इसका अभिप्राय पैनल या लीवर फ्रेम से प्रचालित सिगनलो , काँटो और अन्य उपकरणो की ऐसी व्यवस्था से है जो मेकेनिकल लाॅकिंग और इलेक्ट्रिकल लाॅकिंग अथवा दोनो के द्वारा परस्पर इस प्रकार सम्बद्ध रहे कि उनका प्रचालन एक समुचित क्रम मे होकर संरक्षा सुनिश्चित हो सके। ये दो प्रकार की होती है -
डायरेक्ट - इसके अन्तर्गत पाॅइन्ट व सिगनलों का संचालन एक ही स्थान जैसे सेन्ट्रल केबिन, एन्ड केबिन, पेनल या आर आर आई से होता है। इसमे पाॅइन्ट व सिगनलों के प्रचालन मे ं समय कम लगता है व गाड़ी के लिए सिगनल शीघ्र आॅफ किए जा सकते हैं।
इन-डायरेक्ट - इसके अन्तर्गत पाॅइन्ट व सिगनलों का संचालन अलग-अलग स्थान से होता है। पाॅइन्टो के पास लीवर या लीवर फ्रेम लगे होते हैं वहीं से पाॅइन्ट सेट किए जाते हैं। जबकि सिगनलों का संचालन स्टेशन पर बने लीवर फ्रेम से होता है। अतः इसमे पाॅइन्टो व सिगनलो के प्रचालन मे समय अधिक लगता है।
इन्टरलाॅकिंग की विभिन्न पद्धतियाँ
- मेकेनिकल इन्टरलाॅकिंग
- इलेक्ट्रिक इन्टरलाॅकिंग
- पैनल इन्टरलाॅकिंग
- रूट रिले इन्टरलाॅकिंग
- इलेक्ट्रोनिक इन्टरलाॅकिंग
- साॅलिड स्टेट इन्टरलाॅकिंग
इन्टरलाॅकिंग के सिद्धान्त
- किसी भी रनिंग लाइन के लिये सिगनल को तब तक आॅफ नहीं किए जा सकेगा जब तक कि -
- उस लाइन से सम्बन्धित सभी पाॅइन्ट (ओवरलेप सहित) सही सेट न कर दिए गए हो और फेसिंग पाॅइन्टो को लाॅक न कर दिया गया हो और यदि कोई इन्टरलाॅक्ड समपार फाटक बीच में हो तो उसे बन्द करके लाॅक न कर दिया गया हो।
- अन्य सभी पाॅइन्ट जो साइडिंग और नाॅन-रनिंग लाइनो से रनिंग लाइनो को मिलाते हो उन्हें विपरीत दिशा में सेट न कर दिए गए हों।
- एक बार सिगनल आॅफ कर देने के बाद सम्बन्धित पाॅइन्टो को बदलना या फाटक को खोलना सम्भव नहीं होगा।
- यदि स्टेशन पर वार्नर सिगनल लगा हुआ हो तो उसे तब तक आॅफ नहीं किया जा सकेगा जब तक कि मेन लाइन से संबंधित सभी सिगनलों को आॅफ न कर दिया गया हो।
- किसी भी लाइन के लिए सिगनल आॅफ करने के बाद विरोधाभासी सिगनलों को आॅफ करना सम्भव नहीं होगा।
- एडवांस्ड स्टार्टर/अंतिम रोक सिगनल को तब तक आॅफ नहीं किया जा सकेगा जब तक कि अगले ब्लाॅक स्टेशन से ब्लाॅक उपकरण पर लाइन क्लीयर प्राप्त नहीं कर लिया गया हो।
इन्टरलाॅकिंग लागू करने हेतु कम से कम आवश्यकताएं
इन्टरलाॅक्ड स्टेशनो को चार स्टेण्डर्ड मे विभाजित किया गया है। रेल प्रशासन द्वारा सेक्शन मे चलने वाली गाड़ियों के घनत्व को ध्यान में रखते हुए जैसी आवश्यकता हो वैसा इन्टरलाॅकिंग स्टेण्डर्ड स्टेशन पर लागू किया जाता है। इन्टरलाॅकिंग स्टेण्डर्ड की कम से कम आवश्यकताएं अगले पृष्ठ पर दी गई हैं -
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