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थ्रू -पुट / THROUGH PUT


थ्रू - पुट


24 घंटो में किसी खण्ड में जितना टन माल ढोया जाता है , उसे उस खण्ड का थ्रू - पुट कहते है.


जो यातायात खण्ड में ढोया जायेगा, उसमे सवारी तथा माल दोनों यातायात होते है. सेक्शन में ढोये जाने वाले कुल यात्रियों की संख्या सवारी थ्रू - पुट कहलाती है. माल थ्रू - पुट निम्न प्रकार से निकाला जा सकता है -


1. कुल वैगनो की संख्या जो चलायी गयी.


2. GTKM, जी ढोया गया.


3. NTKM, जो ढोया गया.


थ्रू - पुट का आकलन माल यातायात के सन्दर्भ में सामान्यत: NTKM व्दारा किया जाता है. अत: योजनाये इसी NTKM के आधार पर निर्धारित की जाती है. यदि खण्ड क्षमता बढती है तो थ्रू - पुट भी उसी के अनुसार बढ़ेगा, परन्तु खण्ड क्षमता बढाये बिना भी थ्रू - पुट को बढ़ाया जा सकता है.


खण्ड क्षमता एक सीमा के बाद संतृप्त हो जाता है, लेकिन प्रति वैगन लोड बढ़कर थ्रू पुट अवश्य बढ़ाया जा सकता है. इसका अर्थ यह भी हुआ कि खण्ड क्षमता का संबंध केवल गाडियों की क्षमता से होता है, यह चाहे कम डिब्बो की हो या अधिक डिब्बो की, परन्तु थ्रू - पुट का संबंध खण्ड में चलने वाले कुल डिब्बो से है.


थ्रू - पुट के प्रकार -


A. पैसेंजर थ्रू - पुट - इसमें यात्रियों की संख्या तथा उनके व्दारा तय की गई कुल दूरी किमी. में निकाली जाती है.


Passenger Through Put = No. of Passenger X Distance Travelled by them in km


B. गुड्स थ्रू पुट - इसमें वैगनो की संख्या , GTKM तथा NTKM निकाला जाता है.


C. रेल ट्रेक थ्रू - पुट - इसका संबंध जी एम टी (ग्रास मिलियन टन) से होता है. इसके आधार पर रेलपथ की आयु तथा अनुरक्षण की योजना बनाई जाती है.


थ्रू - पुट बढ़ाने के उपाय -


A) गाडियों की संख्या बढाकर -


1. क्लोज सर्किट (सी सी रेक) गाडियों के व्दारा खण्ड क्षमता का पूरा - पूरा उपयोग करके.


2. केवल लाइट इंजन के मूवमेंट को बढ़ावा नही देना चाहिए तथा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रत्येक इंजन पर्याप्त मात्रा में लोड खींच रहा है.


3. अच्छी बाजार रणनीति अपनाकर.


4. निश्चित समय के लिए लक्ष्य निर्धारित करना और उस पर विशेष ध्यान देना.


5. काम के प्रति जागरूक कर्मचारियों को पारितोषिक देना.


6. डीजल के अपेक्षा ए सी ट्रेक्सन को अपनाना.


7. अधिक हार्स पावर वाले इंजनो का उपयोग करके मालगाडी को अधिकतम गति में चलाना.


B) लोड प्रति ट्रेन बढ़कर -


1. लूप लाइन की क्षमता में बढाकर.


2. अधिक भार क्षमता वाले वैगनो को अपनाकर.


3. ट्रैक में सुधार करके तथा अधिक भार सहन करने वाले ट्रैक का उपयोग करके,


4. डिब्बो के टेयर वेट को कम करके. (एक्सल लोड = CC + TW/NO. of Axles)


C) लोको ट्राल तकनीक को अपनाकर.


D) लो लेवल प्लेटफ़ार्म बोगी कंटेनर को अपनाकर.


उपरोक्त के अतिरिक्त निम्नलिखित बातो को अपनाकर भी थ्रू - पुट बढ़ाया जा सकता है-


1. उच्च क्षमता वाले डीजल, विद्युत तथा मल्टीपल इंजनो का उपयोग करके.


2. अधिक ड्रा - बार शक्ति वाले सुधारित सीबीसी कपलिंग वाले रोलिंग स्टाक का उपयोग करके.


3. चल स्टाक का टेयर बेट और उसकी लम्बाई को अधिक आ बढाते हुए उसकी वहन क्षमता को बढ़ाना.


4. ब्रेकिंग प्रणाली में सुधार करके, (जैसे डिस्क ब्रेक)


5. इंजन क्रू, ट्रेन स्टाफ, स्टेशन मास्टर तथा नियंत्रक के बीच संचार के साधन में सुधार करके.


6. टर्मिनल स्टेशन की क्षमता और वहाँ हैवी हाल / लांग हाल एक लिए परिचालन की सुविधा बढ़कर.


7. धीमी तथा हर स्टेशन पर रुकने वाली सवारी गाडी की आवाजाही हैवी हाल रूट या डेडिकेटेड लाइनों पर कम करके.


8. संबंधित कर्मचारियों को गाडियों के ट्रवल शूटिंग के लिए नई तथा उन्नत तकनीक बताकर .


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