खण्ड क्षमता / टर्मिनल क्षमता
गणना एवं खण्ड क्षमता बढ़ाने के उपाय
खण्ड क्षमता
एक निर्धारित खण्ड पर 24 घंटे में जितनी अधिकतम गाड़ियाँ चलाई जा सकती है, वह उस खण्ड की क्षमता होती है। यह खण्ड के प्रत्येक छोर (दिशा) पर 24 घंटों में अधिकतम गाड़ियों का मूवमेंट किया जाने की क्षमता होती है.
टर्मिनल क्षमता
टर्मिनल क्षमता का अर्थ किसी निर्धारित खण्ड के दोनों ओर स्थित स्टेशन / यार्ड की उस क्षमता से है जिसमे 24 घंटो में अधिकतम गाड़ियों का मूवमेंट होता है किया जा सकता है।
खण्ड क्षमता की आवश्यकता -
· यदि पर्याप्त खण्ड क्षमता की कमी होगी तो संचालन की गति धीमी पड़ जायेगी जिससे मालगाड़ी की गति पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा.
· इससे वैगन तथा इंजन की उपयोगिता चक्र बढ़ जाएगी और इससे यातायात प्रभावित होगा. फलस्वरूप उतना ही माल ढ़ोने के लिए अतिरिक्त वैगन तथा इंजन की व्यवस्था करनी पड़ेगी.
· इसके परिणाम स्वरूप गाड़ियों की संख्या बढ़ जाएगी और खण्ड संतृप्त हो जाएगा. इस प्रकार गाड़ियों के चलने में रुकावट होगी। जिससे महत्वपूर्ण सांख्यिकी में गिरावट आएगी.
किसी खण्ड की क्षमता को निम्न चार प्रकार से निकाला जा सकता है -
1. अधिकतम लाइन क्षमता - संबंधित खण्ड के मास्टर चार्ट में सभी सवारी गाड़ियों को अंकित करने के बाद जो उपलब्ध कोरीडोर बचता है उसमे बाकी गाड़ियाँ इस प्रकार से नियोजित की जाती है कि अतिरिक्त कोई भी गाड़ी चलाना संभव नही हो पाता है. अथवा मास्टर चार्ट में अंकित उन सभी गाड़ियों की अधिकतम संख्या को बताता है, जिनके अतिरिक्त कोई भी अन्य गाड़ी संबंधित खण्ड में चार्ट न की जा सके.
2. प्रायोगिक लाइन क्षमता - किसी खण्ड में प्रतिदिन सभी संचालन आवश्यकताओं (जैसे इंजी, कार्य, आगमन/ प्रस्थान, संचालन के दौरान असामान्य घटना आदि) को पूरी करते हुए जीतने अधिकतम जितनी गाड़ियाँ चलाई जा सकती है उसे खण्ड की प्रायोगिक लाइन क्षमता कहते है. इसे वास्तविक खण्ड क्षमता भी कहते है.
3. किफायती लाइन क्षमता - किसी खण्ड में चलाई जाने वाली अधिकतम गाड़ियों जिससे प्रति गाड़ी संचालन खर्च न्यूनतम रहे, उसे खण्ड की किफायती लाइन / खण्ड क्षमता कहते है.
4. कम्प्यूटर सिमुलेशन व्दारा - इसमें खण्ड के अनुसार इंजन, दूरी, लोड, ग्रेडिएंट, चलन समय और अन्य परिचालन आंकड़े कम्प्यूटर में फीड करके कितनी अधिकतम गाड़ियाँ इस स्थिति में चलाई जा सकती है, उनका आकलन किया जाता है.
खण्ड क्षमता निकालने की विधि
1. किसी निर्धारित खण्ड क्षमता निकालने के लिए समय - सारणी की सहायता से 24 घंटे के अंदर चलने वाली सभी यात्री गाड़ियों की चाटिंग मास्टर चार्ट पर की जाती है. इसके बाद मालगाड़ियों को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि बिना यात्री गाड़ियों को प्रभावित किए अधिक से अधिक मालगाड़ियों चलाई जा सके. इन सभी गाड़ियों को जोड़ लिया जाता है और जो आंकड़ा प्राप्त होता है, वह उस खण्ड की खण्ड क्षमता कहलाती है. प्रायोगिक लाइन क्षमता निर्धारित करते समय खण्ड की भौगोलिक स्थिति, स्टेशनों का प्रकार व क्षमता, तकनीकी सुविधाये, वहन किए जाने वाले माल का प्रकार, इंजन का प्रकार, उपयोग में लाए जा रहे चल स्टाक का प्रकार, सिगनल व्यवस्था आदि को ध्यान में रखा जाता.
2. सैद्धांतिक विधि - अनुभव के आधार पर खण्ड क्षमता निकालने के लिए कुछ सूत्र निर्धारित किए गये है. हालाकि इन सूत्रों में कुछ दोष है फिर भी ये काफी उपयोगी है. ये लाइन क्षमता का विश्लेषण करने, उन्हें बढाने, उन्हें प्रभावित करने वाले कारको पर प्रकाश डालते है. जैसे कि प्रायोगिक विधि में हमने देखा है कि लाइन क्षमता निकालते समय इंजन का प्रकार, चल स्टाक, माल का प्रकार, खंड की भौगोलिक स्थिति, स्टेशनो के प्रकार एवं क्षमता, तकनीकी सुविधाये, सिगनल व्यवस्था आदि की जानकारी भी मिलती है, किन्तु सैध्दांतिक विधि में ऐसा कुछ नही दिखता है.
अत: इस विधि से जो भी आंकड़ा प्राप्त होगा, वह उतना शुध्द नही होगा जितना मास्टर चार्ट विधि या प्रायोगिक विधि से निकालने में प्राप्त होता है. इन सूत्रों में जिस खण्ड की बात की जाती है, वह दो स्टेशनों के बीच का वह खण्ड होता है, जिसमे सबसे धीमी चलने वाली गाड़ी (क्रिटिकल ब्लाक सेक्शन) सबसे अधिक समय लेती है.
3. फार्मूला विधि
1. ब्लाक उपकरण के प्रचालन में जो समय लगता है, उसके लिए 5 मिनट रखा गया था. परन्तु यह समय सिगनल के प्रकार, इंटरलाकिंग के मानक, नान इंटरलाक स्टेशन आदि बातो पर आधारित हो सकता है. अत: यह समय अलग - अलग स्टेशनों पर अलग - अलग हो सकता है.
2. इसी प्रकार द्रश्यता के लिए 70% रखा गया है जो कि लम्बे ब्लाक सेक्शन से संबंधित है.यह 70% हर खण्ड पर प्रत्येक समय एक समान नही हो सकता है. आज रेलवे ने बहुत प्रगति कर ली है. नये -नये उपकरण लगाये जा रहे है तथा सिगनल प्रणाली में भी सुधार हो रहा है.
3. पहली गाड़ी अगले स्टेशन पर पहुचने के बाद दूसरी गाड़ी तुरंत रवाना नही हो सकती है या पिछले स्टेशन पर किसी गाड़ी को जब दिया जाता है तो भी कुछ समय पिछले स्टेशन पर व्यर्थ चला जाता है.
खण्ड क्षमता बढाने के उपाय -
1. ब्लाक सेक्शन की लम्बाई को कम करके.
2. दोहरी लाइन पर जहाँ आवश्यक हो, IBS या C - CLASS स्टेशन बना करके.
3. ग्रेडीएंट को कम करके.
4. दो संकेति सिगनल को बहु संकेति सिगनल व्यवस्था में बदलकर.
5. इकहरी लाइन पर साइमलटेनिअस की सुविधा बनाकर.
6. दोहरी लाइन पर कामन लूप लाइन की सुविधा देकर.
7. जंक्शन स्टेशन एवं बड़े यार्ड जहाँ हो, वहाँ बायपास लाइन बनाकर.
8. डबल डिस्टेंस लगाकर.
9. अधिक गति वाले इंजन एवं रोलिंग स्टाक को अपनाकर.
10. स्वचल ब्लाक पध्दति के अनुसार गाड़ियों का संचालन करके.
11. प्रत्येक स्टेशन पर RRI/SSI लगाकर,
12. स्टेशन मास्टर, चालक, गार्ड, खण्ड नियंत्रक के बीच बेहतर संचार का साधन उपलब्ध कराकर (MTRC)
13. टोकन लेस ब्लाक उपकरण लगाकर.
14. प्रत्येक स्टेशन पर ट्रेक सर्किट / BPAC लगाकर.
15. स्वचल पध्दति के व्दारा ब्लाक उपकरण हटाकर.
16. EOTT / LVCD लगाकर ताकि गाड़ियों का पूर्ण आगमन शीघ्र पता चल जाए.
17. समय सारणी में सुधार करके.
18. खण्ड में गाड़ियों के चलन समय में असमानता को कम करके.
19. लोको, रोलिंग स्टाक, कांटो और सिगनल, संचार के साधन, ओएचई के मेटेनेंश में अधिक सुधार करके,
20. पर्याप्त संख्या में साईंमल्टेनिअस रिसेप्शन वाले लूप बनाकर.
21. गाड़ियों की आर्डनिंग उत्तम प्रकार से करके.
22. समान गति वाली गाड़ियों को एक के बाद एक चलाकर.
23. यार्ड, इंटरचेंज स्टेशन, पड़ोसी मंडलो /रेलों को गाड़ियों के चलन से संबंधित पूर्व सूचना देकर.
24. लगातार मोनिटरिंग करके.
25. स्टेशन पर दिए गए सभी यातायात सुविधाओ का पूरा उपयोग करके.
26. रनिंग स्टाफ के 10 घंटे के नियम का पालन करके.
27. मालगाड़ी का समय सारणी बनाकर और उसका पालन करके.
28. बैंकर / सहायता इंजन समय से उपलब्ध कराकर.
29. दुर्घटना रहित गाड़ी संचालन करके.
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